भारत के पड़ोसी देशों में तख़्तापलट क्यों होता है?

लेखक – धर्मेंद्र कुमार , वैशाली

 

क्या आपने गौर किया है कि भारत के पड़ोसी देशों से ही बार-बार तख़्तापलट या राजनीतिक अस्थिरता की खबरें आती हैं? कभी श्रीलंका, कभी अफ़गानिस्तान, कभी बांग्लादेश और अब नेपाल। हर बार किसी न किसी पड़ोसी देश में लोकतंत्र को अस्थिर करने और सत्ता को हड़पने की कोशिश दिखाई देती है।

 

असल खेल यहां “डीप स्टेट” का है, जिसकी रणनीति यही रहती है कि अपने समर्थकों को बिना चुनाव जीते ही सत्ता पर काबिज़ कराया जाए। इनके लिए जनता की राय, लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया का कोई महत्व नहीं होता।

 

लेकिन सवाल यह है कि आखिर निशाना भारत के पड़ोसी ही क्यों बनते हैं?

 

इसका जवाब है भारत की मज़बूती। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत जिस रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है, उसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था और विश्व मंच पर बढ़ती प्रतिष्ठा ने कई वैश्विक ताक़तों को बेचैन कर दिया है। भारत अब सुपरपावर बनने की राह पर है और यही बात बड़ी शक्तियों के लिए सिरदर्द बन चुकी है।

 

भारत को सीधे चुनौती देना नामुमकिन है। इसलिए कोशिश की जाती है कि भारत के चारों ओर अस्थिरता फैलाई जाए। पड़ोसी देशों में राजनीतिक उथल-पुथल और सत्ता संघर्ष पैदा करके भारत पर परोक्ष दबाव बनाया जाए।

 

दरअसल, भारत को कमज़ोर करने की इन साजिशों की झलक हमें अपने भीतर भी देखने को मिली है। चाहे शाहीन बाग़ हो, किसान आंदोलन हो या लाल क़िले की घटना—ये सब उसी रणनीति का हिस्सा थे। लेकिन भारत की जनता की जागरूकता और मज़बूत नेतृत्व ने हर बार इन मंसूबों को नाकाम कर दिया।

 

आज स्थिति यह है कि भारत में नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना विरोधी ताक़तों के लिए नामुमकिन हो चुका है। भारत का लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है और जनता अच्छी तरह समझ चुकी है कि कौन-सा एजेंडा देशहित में है और कौन-सा सिर्फ़ अस्थिरता फैलाने के लिए।

 

भारत अब उस मुकाम पर है जहाँ दुनिया उसे रोकने की नहीं, बल्कि उसके साथ चलने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि सुपरपावर सकते में हैं—क्योंकि भारत का नया युग शुरू हो चुका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *