बिहार की वर्तमान स्थिति: संभावनाओं और चुनौतियों के बीच एक नया दौर
बिहार, जो कभी भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता था, आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां संभावनाएं और चुनौतियां दोनों बराबर की ताकत से मौजूद हैं। नए जनादेश और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दसवें कार्यकाल की शुरुआत के साथ राज्य एक नए राजनीतिक अध्याय में प्रवेश कर चुका है। परंतु यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन का क्षण नहीं, बल्कि बिहार की दिशा और दशा को पुनर्परिभाषित करने का अवसर है।
सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य
बिहार की सबसे बड़ी ताकत उसका जनसांख्यिकीय आधार है — युवा आबादी। राज्य की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। लेकिन यही ताकत सबसे बड़ी चुनौती भी है, क्योंकि रोजगार के अवसर सीमित हैं। लाखों युवा हर साल पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में दिल्ली, मुंबई, पंजाब और दक्षिण भारत की ओर पलायन कर जाते हैं।
राज्य के जीडीपी में पिछले वर्षों में कुछ सुधार जरूर हुआ है, लेकिन यह सुधार संरचनात्मक रूप से टिकाऊ नहीं कहा जा सकता। कृषि पर निर्भरता अब भी बहुत अधिक है, जबकि उद्योग और सेवाक्षेत्र का योगदान अपेक्षाकृत कम है।
शिक्षा और स्वास्थ्य
शिक्षा के क्षेत्र में प्राथमिक स्तर पर सुधार हुआ है, परंतु उच्च शिक्षा और तकनीकी संस्थानों की स्थिति अभी भी पिछड़ी हुई है। सरकारी स्कूलों में उपस्थिति तो बढ़ी है, पर गुणवत्ता एक बड़ा सवाल बनी हुई है।
स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी समान रूप से चिंताजनक है। गांवों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी, डॉक्टरों की अनुपलब्धता और दवाओं की कमी जैसी समस्याएं अब भी आम हैं। हालांकि हाल के वर्षों में कुछ जिलों में बेहतर अस्पतालों की स्थापना और डिजिटल हेल्थ सिस्टम की शुरुआत हुई है, लेकिन यह अभी शुरुआती स्तर पर है।
शासन और प्रशासन
बिहार में सुशासन की बात वर्षों से की जाती रही है, लेकिन जनता अब “सड़क, बिजली और कानून व्यवस्था” से आगे जाकर “रोजगार, उद्योग और जीवन स्तर” पर जवाब चाहती है।
नीतीश कुमार का प्रशासनिक अनुभव निर्विवाद है, लेकिन इस बार जनता के बीच अपेक्षाओं का स्तर कहीं अधिक है। भ्रष्टाचार पर अंकुश और सरकारी योजनाओं का वास्तविक क्रियान्वयन सुनिश्चित करना आने वाले वर्षों की सबसे बड़ी कसौटी होगी।
राजनीतिक स्थिति
राज्य में एनडीए की सरकार बनने के बाद राजनीतिक स्थिरता तो आई है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन की एकता और जनता के विश्वास दोनों को कितना लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है। बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों पर आधारित रही है, लेकिन युवा मतदाता अब इन सीमाओं से आगे बढ़कर विकास की राजनीति की मांग कर रहे हैं।
बिहार की नई दिशा
आज बिहार के सामने दो रास्ते हैं — या तो वह पुराने राजनीतिक ढर्रे पर चलता रहे और छोटे-छोटे सुधारों से संतोष करे, या फिर वह अपनी छवि को पूरी तरह बदलते हुए एक नए विकास मॉडल का निर्माण करे।
इस परिवर्तन के लिए शिक्षा, कौशल विकास, उद्यमिता और निवेश को केंद्र में रखना होगा। साथ ही, पंचायत स्तर तक जवाबदेही और पारदर्शिता लाना जरूरी है ताकि विकास की योजनाएं केवल फाइलों में न रह जाएं।
निष्कर्ष
बिहार की कहानी अब केवल पिछड़ेपन की नहीं, बल्कि संभावनाओं की कहानी बन सकती है — अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक सहभागिता और प्रशासनिक ईमानदारी एक साथ आएं।
नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह राज्य एक और पारी शुरू कर चुका है। जनता इंतजार कर रही है — यह देखने के लिए कि क्या यह पारी बिहार को उन सपनों के करीब ले जाएगी, जिनकी गूंज दशकों से सुनाई देती रही है: “बिहार बदलेगा तो देश बदलेगा।”


